हरिशंकर परसाई
व्यंग्य लेखन को साहित्य में प्रतिष्ठा दिलाने में परसाई जी का योगदान
अमूल्य है.आजादी के बाद के भारतीय समाज की स्थिति का आईना है उनका
लेखन.उनकी पक्षधरता आम आदमी की तरफ है.
परसाईजी का लेखन कसौटी भी है उन लोगों के लिये जो अपने को व्यंग्य लेखक मानते हैं.
1.इस देश के बुद्धिजीवी शेर हैं,पर वे सियारों की बरात में बैंड बजाते हैं.
2.जो कौम भूखी मारे जाने पर सिनेमा में जाकर बैठ जाये ,वह अपने दिन कैसे बदलेगी!
3.अच्छी आत्मा फोल्डिंग कुर्सी की तरह होनी चाहिये.जरूरत पडी तब फैलाकर बैठ गये,नहीं तो मोडकर कोने से टिका दिया.
4.अद्भुत सहनशीलता और भयावह तटस्थता है इस देश के आदमी में.कोई उसे पीटकर पैसे छीन ले तो वह दान का मंत्र पढने लगता है.
5.अमरीकी शासक हमले को सभ्यता का प्रसार कहते हैं.बम बरसते हैं तो मरने वाले सोचते है,सभ्यता बरस रही है.
6.चीनी नेता लडकों के हुल्लड़ को सांस्कृतिक क्रान्ति कहते हैं, तो पिटने वाला नागरिक सोचता है मैं सुसंस्कृत हो रहा हूं.
7.इस कौम की आधी ताकत लड़कियों की शादी करने में जा रही है.
8.अर्थशास्त्र जब धर्मशास्त्र के ऊपर चढ़ बैठता है तब गोरक्षा आन्दोलन के नेता जूतों की दुकान खोल लेते हैं.
9.जो पानी छानकर पीते हैं, वे आदमी का खून बिना छना पी जाते हैं .
10.नशे के मामले में हम बहुत ऊंचे हैं. दो नशे खास हैं--हीनता का नशा और उच्चता का नशा, जो बारी-बारी से चढ़ते रहते हैं.
11.शासन का घूंसा किसी बडी और पुष्ट पीठ पर उठता तो है पर न जाने किस
चमत्कार से बडी पीठ खिसक जाती है और किसी दुर्बल पीठ पर घूंसा पड़ जाता है.
12.मैदान से भागकर शिविर में आ बैठने की सुखद मजबूरी का नाम इज्जत
है.इज्जतदार आदमी ऊंचे झाड़ की ऊंची टहनी पर दूसरे के बनाये घोसले में अंडे
देता है.
13.बेइज्जती में अगर दूसरे को भी शामिल कर लो तो आधी इज्जत बच जाती है.
14.मानवीयता उन पर रम के किक की तरह चढती - उतरती है,उन्हें मानवीयता के फिट आते हैं.
15.कैसी अद्भुत एकता है.पंजाब का गेहूं गुजरात के कालाबाजार में बिकता है
और मध्यप्रदेश का चावल कलकत्ता के मुनाफाखोर के गोदाम में भरा है. देश एक
है. कानपुर का ठग मदुरई में ठगी करता है, हिन्दी भाषी जेबकतरा तमिलभाषी की
जेब काटता है और रामेश्वरम का भक्त बद्रीनाथ का सोना चुराने चल पडा है. सब
सीमायें टूट गयीं.
16.रेडियो टिप्पणीकार कहता है--'घोर करतल ध्वनि हो रही है.'मैं देख रहा
हूं,नहीं हो रही है.हम सब लोग तो कोट में हाथ डाले बैठे हैं.बाहर निकालने
का जी नहीं होत.हाथ अकड जायेंगे.लेकिन हम नहीं बजा रहे हैं फिर भी तालियां
बज रही हैं.मैदान में जमीन पर बैठे वे लोग बजा रहे हैं ,जिनके पास हाथ
गरमाने को कोट नहीं हैं.लगता है गणतन्त्र ठिठुरते हुये हाथों की तालियों पर
टिका है.गणतन्त्र को उन्हीं हाथों की तालियां मिलती हैं,जिनके मालिक के
पास हाथ छिपाने के लिये गर्म कपडा नहीं है.
17.मौसम की मेहरवानी का इन्तजार करेंगे,तो शीत से निपटते-निपटते लू तंग
करने लगेगी.मौसम के इन्तजार से कुछ नहीं होता.वसंत अपने आप नहीं आता,उसे
लाना पडता है.सहज आने वाला तो पतझड होता है,वसंत नहीं.अपने आप तो पत्ते
झडते हैं.नये पत्ते तो वृक्ष का प्राण-रस पीकर पैदा होते हैं.वसंत यों नहीं
आता.शीत और गरमी के बीच जो जितना वसंत निकाल सके,निकाल ले.दो पाटों के बीच
में फंसा है देश वसंत.पाट और आगे खिसक रहे हैं.वसंत को बचाना है तो जोर
लगाकर इन दो पाटों को पीचे ढकेलो--इधर शीत को उधर गरमी को .तब बीच में से
निकलेगा हमारा घायल वसंत.
18.सरकार कहती है कि हमने चूहे पकडने के लिये चूहेदानियां रखी हैं.एकाध
चूहेदानी की हमने भी जांच की.उसमे घुसने के छेद से बडा छेद पीछे से निकलने
के लिये है.चूहा इधर फंसता है और उधर से निकल जाता है.पिंजडे बनाने वाले और
चूहे पकडने वाले चूहों से मिले हैं.वे इधर हमें पिंजडा दिखाते हैं और चूहे
को छेद दिखा देते हैं.हमारे माथे पर सिर्फ चूहेदानी का खर्च चढ रहा है.
19.एक और बडे लोगों के क्लब में भाषण दे रहा था.मैं देश की गिरती
हालत,मंहगाई ,गरीबी,बेकारी,भ्रष्टाचारपर बोल रहा था और खूब बोल रहा था.मैं
पूरी पीडा से,गहरे आक्रोश से बोल रहा था .पर जब मैं ज्यादा मर्मिक हो जाता
,वे लोग तालियां पीटने लगते थे.मैंने कहा हम बहुत पतित हैं,तो वे लोग
तालियां पीटने लगे.और मैं समारोहों के बाद रात को घर लौटता हूं तो सोचता
रहता हूं कि जिस समाज के लोग शर्म की बात पर हंसे,उसमे क्या कभी कोई
क्रन्तिकारी हो सकता है?होगा शायद पर तभी होगा जब शर्म की बात पर ताली
पीटने वाले हाथ कटेंगे और हंसने वाले जबडे टूटेंगे .
20.निन्दा में विटामिन और प्रोटीन होते हैं.निन्दा खून साफ करती है,पाचन
क्रिया ठीक करती है,बल और स्फूर्ति देती है.निन्दा से मांसपेशियां पुष्ट
होती हैं.निन्दा पयरिया का तो सफल इलाज है.सन्तों को परनिन्दा की मनाही
है,इसलिये वे स्वनिन्दा करके स्वास्थ्य अच्छा रखते हैं.
21.मैं बैठा-बैठा सोच रहा हूं कि इस सडक में से किसका बंगला बन
जायेगा?...बडी इमारतों के पेट से बंगले पैदा होते मैंने देखे हैं.दशरथ की
रानियों को यज्ञ की खीर खाने से पुत्र हो गये थे.पुण्य का प्रताप अपार
है.अनाथालय से हवेली पैदा हो जाती है.
आभार: विकिसोर्स
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